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लघु कथा

तीन दिन की कटौती राजीव और शैली ने टेबल पर एक साथ बैठकर रात का खाना खाया और फिर शैली अपनी प्लेट लेकर किचन की ओर चल दी दोनों ने इतने शांत भाव से खाना खाया मानो वो पति -पत्नी न होकर अजनबी हो , शैली ने मद्धम स्वर मे राजीव से कहा मे सोने…


तीन दिन की कटौती

राजीव और शैली ने टेबल पर एक साथ बैठकर रात का खाना खाया और फिर शैली अपनी प्लेट लेकर किचन की ओर चल दी दोनों ने इतने शांत भाव से खाना खाया मानो वो पति -पत्नी न होकर अजनबी हो , शैली ने मद्धम स्वर मे राजीव से कहा मे सोने जा रही हूँ ।राजीव ने लम्बी गहरी साँस ली और यादों के समंदर मे गोते लगाने लगा ….

           वह याद करता गया कि  इस सिलसिले का आग़ाज़ ठीक दो साल पहले हुआ जब राजीव और शैली दिल्ली विश्वविद्यालय मे वकालत की तैयारी करते थे , शैली साँवले रंग की रेशमी जुल्फ़ों और कसे हुए बदन की चंचल  बंगाली बाला थी वहीं राजीव गेहुए रंग का लंबी कदकाठी वाला शांत स्वभाव का हैदराबादी युवक था । इन दोनों को एक दूसरे की प्रकृति ने कुछ इस तरह आकर्षित किया कि ये दोनों अपने परिवार की मर्जी के बिना ही शादी के बंधन मे बंध गए,कुछ दिनों बाद शैली के परिजनों ने आधे मन से इस रिश्ते को सहमति दे दी लेकिन राजीव के परिवार वालों ने ऐसा नही किया और राजीव और शैली से अपने सारे संबन्ध समाप्त कर दिये ।

          शैली की नौकरी तो कालेज मे ही लग गई और वो प्रतिष्ठत बीमा कम्पनी के केस को देखने लगी , वहीं राजीव का मानना था कि न्याय को गरीबों तक पहुचाना चाहिए और देश मे कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए न्याय व्यवस्था का उचित होना जरूरी है , इन्हीं कारणों के चलते वो तीस हजारी कोर्ट के चक्कर काटता रहता और लोगों को सस्ते एवं उचित न्याय की तरफ ले जाता।दोनों की मासिक पगार  मे भी भारी अंतर था , लेकिन ये बाते कभी उन दोनों के बीच न आई क्योंकि उनकी आपसी समझ और उनका प्यार हर दूरी को पाटने के लिए तैयार था ।

        तभी अचानक शैली के मोबाइल की घंटी बजी जिसे वह खाने के टेबल पर ही छोड गई थी , स्क्रीन पर माँ लिखा हुआ था इस घंटी ने राजीव को स्मृतियो के समंदर से बाहर निकाला और वह शैली का फोन लेकर कमरे की ओर चला  , घंटी बंद हो चुकी थी उसने धीरे से दरवाजा खोला ,,, देखा कि शैली आइने के सामने बाल बना रही थी , ओह!  कितने सुंदर है इसके बाल बिलकुल रेशमी मानो किसी परियो की कथाओं से चुराए हो , उसे क्रीम लगाते देख राजीव को लगा कि इसे यह सब करने की क्या जरूरत है इसकी त्वचा इतनी मुलायम और मासूमियत से भरी है यह इसे खराब कर सकती है लेकिन वह कुछ न बोल सका , शैली की नजर शीशे से सीधे दरवाजे पर पडी जहाँ राजीव उसे घूर रहा था , वह बोली क्या तुम्हें कुछ काम है , राजीव बोला तुम्हारा फोन आया था शैली बोली इसे यहाँ रख दो राजीव ने वैसा ही किया ,, अब जैसे ही वह किचन की ओर चला दरवाजा बंद होने की तेज आवाज़ आई जो कही न कही शैली के गुस्से को दर्शा रही थी ।

जैसे -जैसे राजीव के कदम किचन की ओर बढ रहे थे उसे इस बात का ऐतबार तेजी से हो रहा था कि शैली अब उससे प्यार नहीं करती , और ना ही वो उसका साथ चाहती है । लेकिन सकारात्मक द्रष्टिकोण से लबरेज़ राजीव ने उसे फिर मना लेने की बात सोची और थोड़ी देर सोफे पर बैठा रहा ।,,,

        राजीव फिर से अपने कमरे मे गया जहाँ शैली सो रही थी , उनका ए.सी चालू था जबकि गरमी उतनी नहीं थी दरअसल राजीव यह जानता था कि शैली को ठंड का मौसम बहुत पसंद था इसीलिए वह अपने कमरे को कृत्रिम रूप से ठंडा रखती थी जिस पर उसकी राजीव से कई  बार बहस हो चुकी थी ।,,,,,, राजीव ने बिस्तर पर शैली को देखा वह सो चुकी थी और ठंड से सिकुड रही थी उसके हाथों की मुट्ठीया बंध गई और वह बाईं करवट लिए लेटी थी , राजीव ने एक चादर जोकि शैली के पैरों के नीचे दबी थी को निकालकर उसे उङाने का प्रयत्न किया लेकिन तभी शैली अचानक चौक कर जाग उठी और कड़े शब्दों मे राजीव से कहाँ ‘रहने दो , मैं खुद ओढ लूंगी।

       राजीव समझ गया कि अब उसका यह कमरा उसका नहीं रहा वह सोने के लिए एक तकिये को उठाए सोफे पर आ गया और सोने की नाकाम कोशिश करने लगा । 

          पंखे को घूमते देख राजीव उन बातों को याद करना चाहता था जिसने शैली को दुखी किया , पुनः यादो के समंदर मे डुबकी मारते हुए उसे याद आया कि शादी के छः महीने बाद शैली की माँ ने किस तरह उनके जीवन मे प्रवेश किया ,,,,  

           शैली उस दिन बहुत उत्साहित थी लेकिन राजीव नर्वस था , आँटो मे बैठी शैली राजीव से बार-बार   कहती है देखना माँ तुम्हें पसंद करेगी वह हमारे लिए मच्छी और भात बनाएगी और सोंदेश भी लाई होगी ,,,,,,,,,,, राजीव बस शांत था मानो किसी तुफान का आभास कर अपने आप को उसके लिए तैयार कर रहा हो । आँटो एयरपोर्ट पर पहुचने ही वाला था कि शैली का मोबाइल बजा ,,

    ‘शैली बोली हेलो माँ हम बस पहुँच ही गए’ 

  लेकिन माँ के तरफ से कुछ चीखने की आवाजें राजीव ने स्पष्ट सुनी और फोन कट हुआ                                              राजीव बोला सब ठीक तो है ना ,

   ‘शैली बोली – तुम्हारी वजह से हम फिर लेट हो गए ‘

 ‘  राजीव-  मै तो समय से पहले ही तैयार था ‘

शैली ,,,,, अब चुप हो जाओ हम पहुच गए है इसे पैसे दो मै माँ को कॉल करती हूँ ।

       थोड़ी देर मे शैली अपनी माँ के साथ आई और आँसू पोछते हुए बंगाली मे बोली ,,, बस राजीव को इतना ही  समझ आया कि शैली ने आखिरी मे राजीव कहाँ और राजीव ने अपनी सासू माँ के पैर छुए, ,,, साँसू माँ ने राजीव को बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से कहाँ   “उठो जमाई राजा “

राजीव तो तभी आभास हो गया कि अब कुछ तूफानी जरूर होगा ।   

           अगले दिन सुबह शैली के किचन के शोर से राजीव की नींद खुली उसे लगा कि शैली अपनी नाराजगी भूलकर उसे सुबह की चाय  देगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, वह उठा और सीधे अखबार की तरफ लपका साथ ही एक नोटिस भी उसे मिला जो पिछले दिन आया था ,, 

बिजली विभाग के इस नोटिस मे लिखा था कि तीन दिनो तक आपकी काँलोनी की बिजली रात को 8 -10 तक गोल रहेगी , असुविधा के लिए खेद है । 

तभी शैली को बिना कुछ कहे जाते देख वह चाय बनाने के लिए किचन मे चला गया ,

राजीव चाय की चुस्कियो के साथ अखबार टटोल रहा था लेकिन वह उदास था उसका मन उसके काबू मे न  था , वह एक मछली की तरह व्यवहार कर रहा था मानो उसे पानी से निकाल फेका हो । उसे रह-रह कर शैली याद आ रही थी उसके हसने का निराला अंदाज, उसकी जुल्फो का बार- बार उसके माथे पर गिरना और उन्हे झटके से हाथों से उसे पीछे करना ये सब उसे बेचैन कर रहा था ।

            उसे वो दिन याद आया जब शैली 8 माह के गर्भ से थी और डाँक्टर ने किसी भी समय प्रसव होने की बात कही थी , उसे याद आया कि किस तरह उसे अचानक ललितपुर जाना पड़ा और ना चाहते हुए भी उसे शैली को इस हालत मे छोडना पडा , जाते वक्त उसने शैली के माथे को चूमा और कहाँ शैली मैं जल्द ही वापस आऊँगा अपना ख्याल रखना , शैली बोली तुम मेरी चिन्ता मत करो काम ठीक से निपटाना ।

           राजीव ललितपुर मे था जब शैली की माँ का फोन आया  और उन्होने कहाँ, कहा हो तुम, राजीव बोला मै ललितपुर मे हू , 

 ‘शैली की माँ – तुम्हें पता है यहाँ क्या हुआ ‘

 ‘राजीव-  हाँ मै जानता हूँ’

‘ शैली की माँ – कैसे पति हो तुम,  क्या तुम्हारे यहाँ ऐसे ही व्यवहार किया जिता है औरतो के साथ,  और फोन कट, ‘,

            राजीव को यह पता था कि उसका बच्चा अब इस दुनिया मे नहीं रहा अस्पताल से फोन आ चुका था । 

        यह याद कर राजीव की आँखे नम हो गई,  और वह जानता कि  इसी के बाद शैली की मोहब्बत उसके  लिए कम होते गई ।शैली को  यह आभास होते गया कि उसके बच्चे की मौत का जिम्मेदार कहीं न कहीं राजीव ही था , और इस आभास का प्रबल समर्थन शैली की माँ ने किया था ।

      राजीव ने अपने को शांत करने के लिए टीवी के चैनलो को बदलना चालू किया , एक चैनल पर” अतिथि कब जाओगे”  फिल्म चल रही थी उसमे चाचा जी की हरकतों से परेशान नायक एवं उसके परिवार को देख राजीव हँस पड़ा , लेकिन उसे पुनः अपनी साँसू माँ की याद आई ।

      उसे याद आया कि किस तरह वह धीमे -धीमे बोलती थी खास तौर पर “जमाई राजा “ यह शब्द सुन राजीव के शरीर मे एक अजीब की लहर उठती थी और उसे डर का एहसास होता था ।सासू माँ अक्सर बंगाली लडको की बात करती और राजीव और शैली की पगार की तुलना करती , ऐसा कोई भी मौका जिससे राजीव को नीचा देखना पडे वह नहीं छोडती , हद तो तब हो जाती जब वो शैली से राजीव को तलाक देने की बात राजीव के सामने ही करती और शैली अपनी माँ को डाँट देती ।राजीव बस चुप चाप सुनता रहता और हँस कर बातों को टालता । 

               आखिरी बार वह साँसू माँ से तब मिला जब शैली अस्पताल से वापस आ गई,  उन्होंने शैली को अपने साथ कलकत्ता ले जाने की जबरदस्त जिद की लेकिन शैली नहीं मानी अंततः साँसू माँ ने राजीव को ही केंद्र मानकर भला बुरा कहाँ और कलकत्ता निकल गई ।

            टी वी देखते हुए राजीव उस दिन कोर्ट नहीं गया वह दिन भर घर मे ही रहा और रात के खाने मे उसने शैली के पसंद की मछली और भात बनाए,  शाम के 6 बज चुके थे शैली का आफिस 5 तक होता था और वह 6 तक हर हाल मे घर आ जाती थी लेकिन आज वह 7:45 को घर आई,  राजीव खाने की तैयारी पूरी कर चुका था तभी घंटी बजी राजीव ने दरवाजा खोला शैली बिना कुछ कहे अपने कमरे की तरफ चल दी ।   ,,,,,,,,,,,  राजीव ने भी बोलना उचित नहीं समझा बस वो इतना बोला खाना तैयार है , जल्दी आ जाओ तभी अचानक बिजली गुल हो गई और अंधेरा पसर गया , तभी राजीव को याद आया कि आज तीन दिन की कटौती का पहला दिन है ।

अपने जेब से मोबाइल निकलकर राजीव ने अंधेरे को दूर करने की नाकाम कोशिश की , उसने देखा कि अभी तो मात्र 7:50 ही हुए है और मन ही मन सोचा कि शायद बिजली वालों की घङी कुछ तेज होगी ।

     शैली अपने कमरे मे जा चुकी थी और वह भी मोबाइल की रोशनी से चीजों को टटोल रही थी , राजीव किचन मे मोमबत्ती ढूढने के लिए चल पड़ा ,, एक छोटी अलमीरा को खोलने के बाद उसे शैली के जन्मदिन के अधजले केंडिल मिले जिसे उसके 27 वे जन्मदिन पर जलाया गया था , उसने मोमबत्तियो को समेटा और खाने की टेबल पर जला दिया ।

      कुछ समय बाद शैली टेबल पर आई  ,खाने की प्लेट को देने का आग्रह उसके द्वार राजीव से किया गया , राजीव ने उसे प्लेट मे मछली और चावल परोस कर दिया ,

  ” शैली – यह खाना आज किस खुशी मे पकाया गया है”

     राजीव को उसके स्वर मे आश्चर्य भाव प्रतीत हुआ 

  ‘ वह बोला – कुछ खास नहीं बस आज कोर्ट नहीं गया था तो सोचा खाना ही बना लू ‘   

……. शैली कुछ न बोली जबकि राजीव को इस प्रश्न का इंतेज़ार था कि ‘आज तुम क्यों नही गये ?’

    अगले कुछ मिनटों तक दोनो मोमबत्ती के साऐ मे अपना भोजन करते रहे ।

 एक लम्बी खामोशी के बाद शैली बोली – आज तुम्हारे एन.जी.ओ से मि.जैन का फोन आया था , उन्होंने तुम्हे फोन करने  को कहा है ।

 हाँ और एक बात  यह रानी कौन है ? जिसके लिए तुम मुझे अकेला छोड ललितपुर चले गये ।

 राजीव चौकन्ना होकर बोला -तुम्हें किसने बताया यह सब 

शैली -मुझे मि .जैन ने सब कुछ बताया , अगर तुम्हें बताने मे कोई तकलीफ हो तो रहने दो

  शैली को इस लहजे मे बात करते देख राजीव को बिल्कुल भी आश्चर्य न हुआ बल्कि वो यह चाह रहा था कि शैली उसे और कुछ कहें अब वो इस शांति को और बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था ।

  वह बोला -तुम्हें याद है वह रात जब खाने के बाद मुझे जैन का फोन आया था और मै बिना कहें चला गया था ।

   शैली सिर्फ हूँ बोली 

 वह रानी का ही केस था , ये वहीं तिमारपुर केस है ।

 शैली -क्या तुम साफ- साफ बताओगे?

 राजीव ने वृतांत प्रारंभ किया – मै उस रात जैसे ही जैन के घर पहुँचा मुझे माहौल मे एक गरमाहट का आभास हुआ, जैन और उसकी पत्नी दोनों स्तब्ध खड़े थे वहीं बाजू मे एक सोफे पर एक लड़की जो दोनों पैरों से पोलियो ग्रस्त थी बैठी थी , मैंने बाहर एक वील चेयर देखी थी लेकिन मै यह समझ न पाया कि ये किसकी थी पर अंदर यह शंका समाप्त हो गईं ,  अंदर सोफे के बाजू मे एक तखत था जिस पर एक अधेड उम्र का आदमी लेटा था जिसकी होटो और कान के पास से खून बह रहा था , मै कुछ भी पूछ पाता इससे पहले ही जैन बोला अच्छा हुआ तुम आ गए देखो यह सब । 

     मैं जैसे ही यह पूछने वाला था कि क्या हुआ मैनें उस लड़की की तरफ देखा और मै पूर्णतः चौक गया , मुझे ऐसा आभास हुआ मानो मेरी आत्मा मेरा शरीर त्याग देगी , मेरा दिमाग मानो मुझ से कह रहा हो यह भ्रम है विश्वास मत कर ……. मैने देखा कि वह लडकी गर्भवती थी! हे ईश्वर, 

अब मैने इस प्रश्न का त्याग किया कि ‘क्या हुआ,  मुझे इतनी रात क्यों फोन किया ?’

       मैंने अपने आप को समेटने का भरपूर प्रयास किया , मैं सोच रहा था कि जो लडकी बिना किसी के साहरे चल नहीं सकती वह बच्चा कैसे पैदा कर सकती है , क्या हक है उसे किसी की जिंदगी यू तबाह करने का , मैं उस समय भरा था जोश से , गुस्से से ,आश्चर्य से और शर्म से ,,,,,

 मेरे मन मे उत्कुसता का तूफान उठ रहा था मैं अब सारे सवालों का जवाब चाहता था ।

 मैं उस लड़की से प्रश्न करने के लिए व्याकुल था , तभी जैन बोला -राजीव यह रानी है , और यह इसके पिता है दोनों तिमारपुर मे रहते है । 

          इनकी रिपोर्ट भी पुलिस नहीं लिख रही है ।

मैं अब उस लडकी का नाम जान चुका था , लेकिन अब मै उससे प्रश्न नहीं करना चाहता था ।

     मैने लडकी के पिता से पूछा -तुम्हारा नाम क्या है भाई? 

 वह बोला -जी राजाराम, 

 मै बोला – क्या हुआ तुम लोगों के साथ 

राजाराम- साहब हम लोग  ललितपुर से यहाँ काम के चक्कर मे आए थे , मै अपनी बेटी रानी के साथ तिमारपुर चौराहे पर झुग्गी बस्ती मे रहता हँ , और वहीं सड़क निर्माण का काम करता हूँ । इसकी माँ और तीन छोटी लडकी गाँव पर ही रहते है यहाँ रानी मेरी रोटी बनाने को रहती है ।

  मैंने पूछा – इसकी यह हालत किसने की 

 राजाराम- साहब मैं नहीं जानता , कुछ दिनों से 4-6 लोग रोज धमकी दे रहे थे कि अपने गाँव वापस चले जाओ, और किसी को कुछ बताया तो तुम दोनो को मार दिया जाएगा साहब इस लडकी से पूछता हू तो यह भी कुछ नही बताती।    

      तभी रानी रो पड़ी ,,,

    मैने रानी से पूछा -क्या हुआ था ? मुझे खुलकर बताओ, ,, जैन और उसकी बीबी भी मेरे स्वर को मजबूत करते हुए बोले तुम्हें कुछ नहीं होगा बताओ ।

रानी – साहब मेरी झोपड़ी के बगल

 मे कुछ लडके शोभा की झोपड़ी मे आया करते थे , उनमें से एक मुझे देखकर गाने गाता और बात करने के बहाने ढूढता , एक दिन शोभा ने मुझे कहाँ कि वही लडका जिसका नाम राजू था मुझे पसंद करता है और अकेले मे मिलना चाहता है । मैने उसे साफ शब्दों मे मना कर दिया क्योंकि मै जानती थी  वह मुझसे क्या चाहता था ।

     ,,,, एक लम्बी सांस लेते हुए वह बोली – पर एक दिन जब बाबू जी काम पर चले गये शोभा मेरे पास आई और मुझे उसने खीर दी और बोली आज उसका जन्मदिन है।मैने खीर खाँ ली और मुझे चक्कर से आने लगे मैने शोभा से कहाँ मै सोना चाहती हूँ , वह मुझे एक चटाई पर सुला कर चली गई । लेकिन जब मेरी नींद खुली तो मैने देखा मेरे अन्तरवस्त्र अपनी जगह व्यवस्थित नहीं थे मानो किसी ने उनसे छेड़ छाड की हो , और मेरे गुप्तांगो मे भी दर्द हो रहा था ।मैंने शोभा को आवज दी कि मुझे क्या हो गया वह आई और हस्ते हुए बोली यह तो होता ही है और वहाँ से मुस्कराते हुए चली गई,  मैं समझ चुकी थी कि मेरा बलात्कार हुआ है।मैं पापा जी से शर्म के मारे कुछ न बोल पाई उस समय भी नहीं जब मेरे मासिक धर्म आना बंद हो गए ।

          मैं , जैन और  उसकी बीबी यह सुन कर सन्न रह गऐ, फिर मौन तोडते हुए जैन बोला कि तुम्हें पुलिस वालो ने क्या कहाँ जब तुम उनके पास गए।

 राजाराम- मैंने यह बात जब अपने पडोसीयो से बताई तो उन्होंने मुझ पर यकीन नहीं किया , उल्टा कुछ लोगों ने मुझ पर ही यह पाप मढ दिया कि मैने ही अपनी बेटी से कुकर्म किया है , लोग जमा होने लगे मुझे गालियां देने लगे बिना मेरी बात सुने , कुछ लड़के जो जोर- जोर से चीख रहे थे मे से किसी एक ने मुझे मारा और सारी भीड़ मुझ पर टूट पड़ी । पुलिस ने आकर मुझे बचाया और रानी से पूछा कि क्या यह सच है , लेकिन उन्होंने इस बात पर भरोसा ही नहीं किया कि मैने कुछ नहीं किया ।और हमसे एक पुलिस वाला बोला कि यहाँ से अपने गाँव भाग जा और इस बच्चे को गिरा दे ,,, हमारी झुग्गी और सामान भी लोगों ने जला दिया , यहाँ तक हम रघु रिक्शे वाले कि मदद से आए है।

       ,,,,,,,  अचानक लाईटो के जलने से राजीव चौक पड़ा और उसकी क्रमबद्धता टूट गई, उसने देखा शैली अपनी आँखों से आँसू पोछ रही थी , अब  वह और सुनने की इच्छुक नहीं थी पर यह क्या अभी तो 8 :45 ही हुए थे कि बिजली आ गई थी , शैली ने अपनी प्लेट और बचा हुआ खाना किचन मे रखा और सीधे अपने कमरे मे चली गई ।

.                  

पिछली रात भी कछ पुरानी रातों की तरह ही नीरस थी , राजीव ने वह रात भी सोफे पर उसी पंखे और पुरानी यादो के सहारे काटी । 

  लेकिन   अगली  सुबह का नजारा बदला हुआ था , आसमान पर बादल छाए हुए थे और सुबह तड़के बारिश भी हुई थी , आज राजीव अदालत जाना चाहता था लेकिन दिल्ली के उस सुहाने मौसम मे उसने बाहर सैर पर जाने का निर्णय लिया , शैली पिछले कुछ दिनो की तरह बिना कुछ कहे आँफिस निकल गई।

जैसे ही राजीव ने उसने जाने के लिए दरवाजा खोला उसे एक और नोटिस मिला जिस पर लिखा था कि कटौती बस आज रात को एक घंटे के लिए ही होगी , कार्य पूर्ण हो चुका है असुविधा के लिए खेद है ।

     राजीव आज अपना समय इंडिया गेट पर गुजारने के लिए निकला वैसे ही तेज बारिश आ गई जिसने  उसके प्लान पर पानी फेर दिया , अब वह घर पर ही था और दोपहर होते ही शाम के खाने की तैयारी मे जुट गया उसने प्रसिद्ध हैदराबादी जाफरानी बिरयानी बनाने का निश्चय किया , ,,,,,,

           शाम 6 बजे से वो शैली की राह तकने लगा लेकिन वह नहीं आई घड़ी की तरफ देखते हुए 6:15 हो चले अब राजीव ने टीवी देखने का सोचा , वह पुनः चैनलो को खंगालता रहा और घडी को देखता रहा ,,,,,,,

    ठीक 8 बजे दरवाजे की घंटी बजी , जैसे ही राजीव ने दरवाजा खोला उसे शैली दिखी जो भीगी हुई थी , उसके बाल खुले हुए थे और सारे कपड़े गीले होकर चिपक गए थे जिससे उसका अंग- अंग का आभास स्पष्ट हो रहा था ,

उसका शरीर मादकता के सारे पैमाने तोड चला था , उसके देह की मदहोश करने वाली महक राजीव को उसकी और आकर्षित कर रही थी ,,, वो चहता था कि शैली को आगोश मे भर ले लेकिन एक अद्रश्य दीवार जो दोनो के बीच थी ने राजीव को रोक दिया ।

      अचानक बिजली गुल हो गई,  शैली आँखों से ओझल हो चुकी थी और अपने मोबाइल से सहारे कमरे की तरफ बढ रही थी , लेकिन राजीव अभी भी उसे महसूस कर रहा था उसकी मादक छाया अभी भी उसकी आँखों मे थी ।,,,,,

  राजीव शैली से – तैयार होकर आ जाओ खाना तैयार है।

  शैली – टेबल लगा लो आ रही हूँ।

           टेबल पर कल वाली ही मोमबत्ती रोशनी दे रही थी राजीव ने बिरयानी देते हुए कहाँ आज मेरी पसंद का खाना है , शैली शांत रही उसने कल वाला प्रश्न पूछना  उचित नहीं समझा कि’ क्या जरूरत थी इसकी ?’

       अंततः शैली ने राजीव से कहाँ – मुझे तमसे कुछ कहना है ।

       राजीव समझ नहीं पा रहा था कि इतनी गंभीर मुद्रा मे यह क्या पूछना चाहती है , राजीव मस्तिष्क की उधेड बुन मे लग गया , इतना व्याकुल वह पिछले कुछ दिनो मे नहीं था ,  

      ‘ हाँ कहो’

        शैली – राजीव मैने एक अलग घर देखा है जो मेरे आँफिस के करीब है मै वहीं शिफ्ट होना चाहती हूँ , 

      राजीव यह सुनकर हैरान रह गया , अब वो कुछ कहने का ईच्छुक न था वह ज्लदी से अपना खाना समाप्त कर टेबल छोडना चाहता था । 

शैली ने राजीव को इतना मायूस कभी न देखा था ,

  वह मासूमियत के साथ बिरयानी खा रहा था , बिल्कुल एक अबोध बच्चे की तरह, उसका ललाट जो अक्सर अनेक विचार रूपी रेखाओं से घिरा रहता था आज पूरी तरह से शांत था , मानो उसके मन के सागर मे  एक जबरदस्त तूफान आया हो और जो सब कुछ अपने साथ अनंत गहराई तक ले गया हो , उसकी निगाहें प्लेट पर थी और उसे देखकर यह अनुमान लगाना  मुश्किल न था कि वो स्तब्ध था।

         राजीव ने अपना भोजन समाप्त किया और प्लेट उठाकर किचन की ओर बढ चला , अचानक वह रुका उसे हिचकियों का एक दौरा पड़ा जिसका कारण तेजी से बिरयानी खाना था , उसने टेबल की तरफ पुनः रुख किया और पानी का ग्लास उठाया और इतनी हडबडी मे पानी पिया की पानी उसकी कमीज़ पर गिर गया ।

      शैली यह सब आश्चर्य के साथ देख रही थी , उसने राजीव से कहाँ – राजीव इसमें इतना उदास होने की कोई  बात नहीं है ,,,,,,,, यह तो एक ना एक दिन होना ही था।

     एक लम्बी गहरी सांस के बाद राजीव-  नहीं शैली ये हमारे बीच कभी नहीं होना था ।

             मौसम फिर बेईमान हो चला था , बादलों की हल्की गडगडाहट माहौल को और गंभीर बना रही थी।तभी शैली तीखे स्वरों मे – राजीव इसके जिम्मेदार भी तुम ही हो अगर तुम उस दिन ललितपुर न जाते तो आज ये दिन आते , आज हमारा बच्चा हमारे पास होता । लेकिन आज की स्थिति यह है कि मैं अब कभी माँ  नहीं बन पाऊंगी ,,,,,,,, शैली के आँसू अब ठहर नहीं पा रहे थे ,उसके सब्र का बांध टूट चुका था और वह रो पड़ी ।

        क्या  तुम जानते हो राजीव कि माँ बनके अपने बच्चे को खोने का एहसास कैसा होता है , कैसा लगता है जब आपके पेट मै अजीब सी हरकते होती है जिसे लात मारना कहते है , कैसा लगता है जब आप को यह पता चलता है कि आप एक बच्चे को जन्म देने वाले हो, एक नए संसार का निर्माण करने वाले हो ?………..नहीं तुम नहीं जान सकते, 

                तुम पुरुष हो ना ,,,,,,,,,तुम्हें पता है मैं यह तक नहीं जानती कि मेरा बच्चा लडका था या लडकी , वह दिखता कैसा था  , तुम तो व्यस्त थे अपने कामों मे ।

                8:50 हो चले थे , राजीव शांत बैठा था और शैली आँसू पोछ रही थी ।

      राजीव-  शैली हमारा बच्चा बिल्कुल तुम पर गया था , मैंने जब उसे देखा तो वह मुट्ठी बाँधे हुए था , बह मुडा हुआ था जैसे कभी -कभी तुम मुड जाती हो जब तुम्हें ठंड लगती है , वह तुम्हारी माँ की तरह तीखी नाक वाला लडका था ।

      शैली -चौकते हुए तुम्हें ये कैसे पता तुम तो यहाँ थे ही नहीं ,

      राजीव- जब तुम्हारा पैर बगीचे मे फिसला था उस समय शर्मा जी ने तुम्हें पडोस से देख लिया था , वो ही तुम्हें अपनी पत्नी के साथ अस्पताल लाए थे और मुझे भी उन्होंने ने ही बताया था कि तुम अस्पताल मे हो , मै तुरंत ललितपुर से वापस आ गया था मैं उस वक्त को सोचने से भी कतराता हुए जब डाक्टर ने मुझे बताया कि हमारा बच्चा अब इस दुनिया मे नहीं रहा और तुम अब माँ कभी नहीं बन पाओगी ,,,,,, मैं उस तिहरे आघात से आज तक उभर नहीं पाया हूँ।

      शैली -तिहरे मतलब, 

    राजीव-  ललितपुर मे रानी का घर था मै वही गया था , मुझे वहाँ पहुँच कर पता चला था कि रानी ने कुएँ मै कूदकर आत्महत्या कर ली ,

                     जब मैं और जैन वहाँ गये तब उसके पिता ने बताया कि समाज के ताने और उसकी माँ की जली कटी बातों ने उसे परेशान कर दिया , वह उस समय और व्यथित हो उठती जब उसे यह आभास होता कि उसे न्याय तो क्या उस शहर से भी लज्जित होकर जाना पडा जहाँ उसका बलात्कार हुआ, अंततः इस निष्ठुर दुनिया से विदा लेने के सिवा उसके पास कोई उपाय न था ।

       शैली नम आँखों को पोछते हुए-  तो फिर तुमने मुझे ये सब पहले क्यो नहीं बताया ।

       राजीव-  मैं तुम्हें और दुखी नहीं करना चाहता था , और तुम्हारी फिक्र करता हूँ  मै यह भी जानता हू कि तुम ऐसी बातों से दुखी हो जाती हो , , ,

       9:00 बजे बिजली आ गई लेकिन बारिश की वजह से फिर भाग खड़ी हुईं । राजीव अब किचन मे था शैली ने उसके पीछे  से आकर उसे जकड़ लिया और रोते हुए बोली राजीव-  मुझे माफ कर दो मैं तुम्हें समझ न सकी ।

  राजीव पलटा शैली के ललाट को चूमते हुए उसने उसे अपनी बाँहो मे समेट लिया , वह उससे कहना चाहता था कि इस की कोई जरूरत नहीं या मै तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ , लेकिन उसका मौन ही हर भाव को बयाँ कर रहा था , आज वह खुश था इतना खुश की उसकी आँखों से अश्को की धार फूट पडी , जिसने उनके बीच के तमाम मतभेदों को धो दिया ।

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